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रजाइयों के दिन / शिवनारायण जौहरी 'विमल'

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आ गये कंबल और
रजाइयों के दिन
रुई और ऊन के
घुड़ दौड़ के दिन
रज़ाई मैं मुह ढाक कर
दांतों का संगीत सुने के दिन
बुढ़ाई हड्डियों पर
तरस खा कर
सोते अलाओं के
जगाने के दिन
सड़क पर करफू
लगाने के दिन
दरवाजे और खिड़किया
बंद करने के दिन
सूरज ने शीत लहरों
से सुलह करती
ठंडी धूप के दिन
पहाड़ी मैंदान पर बर्फ की
चादर बिछने के दिन
गुलमार्ग मैं बर्फ से
खेलने के दिन
गुफाओं मैं पाशमीने पर
कड़ाई करने के दिन
डलझील पर बर्फ
जम जाने के दिन॥