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रात भी नींद भी, कहानी भी / फ़िराक़ गोरखपुरी

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रात भी नींद भी कहानी भी
हाय, क्या चीज है जवानी भी

एक पैग़ामे-ज़िन्दगानी भी
आशिक़ी मर्गे-नागहानी भी।

इस अदा का तेरे जवाब नहीं
मेह्रबानी भी सरगरानी१ भी।

दिल को अपने भी ग़म थे दुनिया में
कुछ बलायें थीं आसमानी भी।

मनसबे - दिल२ ख़ुशी लुटाना है
ग़मे-पिनहाँ३ की पासबानी भी।

दिल को शोलों से करती है सेराब
ज़िन्दगी आग भी है पानी भी।

शादकामों को ये नहीं तौफ़ीक़
दिले ग़मग़ीं की शादमानी भी।

लाख हुस्ने-यक़ीं से बढ़कर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी।

तंगना-ए-दिले-मलूल४ में है
बह्रे-हस्ती की बेकरानी भी।

इश्क़े-नाकाम की है परछाईं
शादमानी भी, कामरानी भी।

देख दिल के निगारखाने में
जख़्में-पिनहाँ५ की है निशानी भी।

ख़ल्क़ क्या-क्या मुझे नहीं कहती
कुछ सुनूँ मैं तेरी ज़बानी भी।

आये तारीख़े-इश्क़ में सौ बार
मौत के दौरे-दरम्यानी भी।

अभी शेष है ... ... ...