भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह पागल है / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 2 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=चिन्ता / अज्ञेय }} {{KKC...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 वह पागल है। मैं उस का निरन्तर प्रयास देख कर उसे समझाता हूँ, 'पागल! ओ पागल! तू इस टूटे हुए कलश में पानी क्यों भरता है? इस का क्या फल होगा? यह पानी बह कर लाभहीन अनुभव की रेत में सूख जाएगा, और तू प्यासा खड़ा देखता रहेगा।'
किन्तु वह मानो अलौकिक ज्ञान पाकर बड़ी दृढ़ निष्ठा से कहता है : 'जहाँ जल गिरता है, वहाँ जीवन प्रकट होता है। दु:ख ही में सुख का अंकुर है।'
वह पागल है! असाध पागल है!

दिल्ली जेल, 15 नवम्बर, 1932