भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विरह मधुर / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=रामशंकर द्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे शरीर में
जो धूप लग रही है दस बजे
दस किलोमीटर दूर,
तुम्हारे ऑफ़िस के बरामदे में
वही धूप
तुम्हारी देह का भी तो स्पर्श कर रही है

सान्ध्य रात में
पूर्णिमा का जो आलोक फैला है
और वृक्ष-वनस्पतियों की फाँक को
पार करता हुआ
मैं चलता जा रहा हूँ
शान्ति रूपी फार्मेसी में

उसी ज्योत्सना को
अपने शरीर में लेकर तुम
अपने घर की खुली छत पर
खड़ी रहती हो उस समय

किसकी सामर्थ्य है
जो हमें दूर-दूर रख सके !

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी