भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्यंग्य / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 4 जून 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने उन पर व्यंग्य लिखा
वही उनका सबसे अच्छा विज्ञापन निकला
वही मेरी सबसे कमाऊ रचना निकली
वही हिन्दी साहित्य मं समादृत भी हुई।