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शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं / सिकंदर अली 'वज्द'
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शौक़ की नुक्ता-दानियाँ न गईं
रात बीती कहानियाँ न गईं
हुस्न ने दी हज़ार बार शिकस्त
इश्क़ की लनतरानियाँ न गईं
नक़्श बन बन के रह गईं दिल में
सरसरी नौजवानियाँ न गईं
चेहरा-ए-ज़िंदगी की रौनक़ हैं
हौसलों की निशानियाँ न गईं
‘वज्द’ मायूसियों के ज़ोर में भी
अज़्म की कामरानियाँ न गईं