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सच / विजय बहादुर सिंह

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सच सच की तरह था
झूठ भी था झूठ की तरह
फिर भी
मिलते-जुलते थे दोनों के चेहरे
समझौता था परस्पर
थी गहरी समझदारी
राह निकाला करते थे
एक दूसरे की मिलकर
सच की भी अपनी
दुकानदारियाँ थीं
मुनाफ़े थे झूठ के भी अपने
सच, सच की तरह था ।