भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सज्जन कितना बदल गया है / लाला जगदलपुरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहकन का अहसास कराता, चंदन कितना बदल गया है
मेरा चेहरा मुझे डराता, दरपन कितना बदल गया है ।

आँखों ही आँखों में, सूख गई हरियाली अंतर्मन की;
कौन करे विश्वास कि मेरा, सावन कितना बदल गया है ।

पाँवों के नीचे से खिसक-खिसक जाता सा बात-बात में;
मेरे तुलसी के बिरवे का, आँगन कितना बदल गया है ।

भाग रहे हैं लोग मृत्यु के, पीछे-पीछे बिना बुलाए;
जिजीविषा से अलग-थलग यह, जीवन कितना बदल गया है ।

प्रोत्साहन की नई दिशा में, देख रहा हूँ, सोच रहा हूँ;
दुर्जनता की पीठ ठोंकता, सज्जन कितना बदल गया है ।