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सपने का सच / मोहम्मद साजिद ख़ान

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सपने का सच, सच हो जाए,
कहो मज़ा फिर कितना आए !

दौड़ रही मै आगे- आगे,
पीछे मोटा भालू भागे ।
साँस फूलती, चला न जाता
और कलेजा मुँह को आता ।
 
अगर वही सचमुच आ जाए,
कहो मज़ा फिर कितना आए !

चढ़ पहाड़ की ऊँची चोटी,
बैठी एक शेरनी मोटी ।
गिरी फ़िसल कर मैं तो नीचे
और शेरनी पीछे-पीछे ।
 
अगर कहीं मुझको खा जाए,
कहो मज़ा फिर कितना आए!

इन्द्रधनुष छूने को मन में,
तितली बनकर उड़ूँ गगन में ।
चंदा मामा से मिल आई,
तारों के संग धूम मचाई ।

पंख अगर मुझको लग जाएँ,
कहो मज़ा फिर कितना आए !