भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सफरनामा जिदंगी का / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 19 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जि़न्दगी का सफरनामा
तेरा और मेरा
कभी खुशियाँ थोड़ी कम
तो कभी जी भर के गम
सपने छोटे
तो कभी बड़े
टूटते-बिखरते
तो कभी बनते
कभी संघर्ष कटीला
रास्ता पथरीला
कभी मानों फूलों-सी महकती बेला
कभी सबकुछ बिलकुल आसान
तो कभी मनोबल लहूलुहान
कभी एकाकीपन भरी दोपहर
कभी भीड़ भरा प्रहर
कभी दूर-दूर तक काले धुएँ का घेरा
तो कभी चमकती रौशनी भरा सवेरा
कभी अपनों का प्यार बेशुमार
तो कभी पहचानने से इंकार
कभी हताशा के बादल घुमड़ते चारों ओर
तो कभी आशाओं का पुरजोर
कभी आँखे गीली
दर्द भरे इंतजार में
तो कभी अनंत खुशियों की चमक
चेहरे के अभिसार में
जि़न्दगी का सफरनामा तेरा और मेरा एक जैसा