भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब की सुनना, अपनी करना / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 17 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब की सुनना, अपनी करना
प्रेम नगर से जब भी गुज़रना

अनगिन बूँदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना

फूलों का अंदाज़ सिमटना
ख़ुशबू का अंदाज़ बिखरना

बरसों याद रखें ये मौजें
दरिया से यूँ पार उतरना

अपनी मंज़िल ध्यान में रखकर
दुनिया की राहों से गुज़रना