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समानान्तर उज्यालो / गीता त्रिपाठी

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नडराऊ
रातपरे पनि
बिहानको आशा रित्तिएको छैन
 
तिम्रो अँध्यारोलाई बचाउँदा-बचाउँदा
मेरै अनुहारमा ठोक्किएर
कैयन् उज्याला युगहरू फर्किए
देखेकै छौ ?
यो अनुहारभरि
तिनै युगको पीडा छ
 
समानान्तर उज्यालो बोकेका
ती युगहरू
कहिल्यै बन्द नहुने
खापा रहेछन्
 
तिम्रो चोरझ्यालबाट
अलिकति चियाएर हेर त !
त्यो उज्यालो
अहिले
तिम्रै ढोका ढक्ढकाइरहेछ।