भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनौ हो भइया हमहू देखेन / बोली बानी / जगदीश पीयूष

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:35, 24 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनौ हो भइया हमहू देखेन
सपना एकु अनोखा!

मेहनति की माया ते चमका
घर दुआरु चउबारा
लूटि फूंकि औ धांधागरदी
ह्वै गे नौ दुइ ग्यारा
लाला अब ना डंडी मारैं
नेता देइं न धोखा!

छ्वाट मुलुक ते बड़ा न ब्वालै
हथियारन कै बोली
गै बिलाय धरती पर ते
खउआबीरन कै टोली
आंगन मा यतना सुख उमगा
हमते जाइ न जोखा!

मौसम आपन रंग देखावै
फसिलि छमाछम नाचै
कउनौ जोगी गल्लिन गल्लिन
ढाई आखर बांचै
दसौ दिसा मा नयी भोर कै
गीतु गूंजिगा चोखा!