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सूरज के किरण /रवीन्द्र चन्द्र घोष

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चोरी-चोरी चुपके-चुपके
खिड़की सेॅ केकरा झाँकै छै
अभी लालिमा सूरज केरोॅ
प्राची सेॅ आवै बाला छै
अभी भोर के अंधरिया मेॅ
मत एना ऐलोॅ-गेलोॅ करोॅ
अभी नींद-स्वप्निल बेला मेॅ
नै एना मिलना-जुलना करोॅ
चोर-उचक्का लोगें समझी केॅ
खरोॅ-खरोॅ कुछ कही देतौ तबेॅ
पानी उतरी जैतौं लाजोॅ के
हमरो इज्जत नै रहतोॅ तबेॅ
सुतली छी आभी सुतेॅ देॅ तों
फोड़ पावी केॅ हम्में ऐवौं
सूर्य-किरण भी आवी जैतै
साँझैं एकरौ साथें राखवौ ।