भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूर्य / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:19, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चंपे के फूल मुंह उठाए
देखते हैं सूर्य की ओर¸
तार पर बैठी एक चिड़िया
ताकती है सूर्योदय¸
जाड़े में सरदी से कुकुड़ता
एक बच्चा उम्मीद से
बैठता है धूप में।

अपनी धुरी पर स्थिर और अचल
सूर्य
देखता है फूल को¸ चिड़िया को¸
बच्चे को
अपने ही प्रताप से
पकती फ़सलों को

सूर्य को नहीं सूझ पड़ती
वनस्पतियां¸ लोग और
रंभाते–जमुहाते पशुओं की कतारें

सूर्य ऊपर की ओर देखता है
शून्य में¸ अन्यमनस्क
सूर्य के धधकते अंतस में
बैठा है अंधेरा

सूर्य को दिखाई नहीं देता

धूप न सूर्य की नन्हीं उंगलियां हैं
न आंखें
धूप सिर्फ़ दृष्टि है
सब पर बिखरी पर कुछ भी न देख पाती
एक नेत्रहीन की।