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सोचा न था / अदनान कफ़ील दरवेश

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सोचा न था कि प्यार में उधड़ जाती है चमड़ी
काँपते हैं जवानी में ही हाथ और पाँव
बदसूरत हो जाती है ज़ुबान
अन्धेरे में लानत बरसती है चेहरे पर

सोचा न था कि आत्मा की पीठ पर नीले निशान
अन्धेरे में यूँ चमकते हैं
जैसे कि नीली मणियाँ हों
अपनी ही हथेली में सिमट जाता है आदमक़द शरीर
हँसी, बारिश की फुहार-सी लगती है
और रोना एक पुरख़ुलूस इबादत की पाकीज़ा महक की तरह
और तुम्हें देखना, दुनिया का सबसे सुन्दर काम हो जैसे
जिसके लिए रात भर इन्तिज़ार में काटे जा सकते हैं
और कई रातें एक साथ भी
और कई महीने और कई साल
और कभी तो कमबख़्त ये पूरी उम्र भी !

सोचा न था कि आँखों में वसन्त की हवा भी चुभती है प्यार में
और रँग जो मुझे हमेशा से पसन्द रहे
एक दिन और कई दिन
मेरे कलेजे में फड़फड़ाएँगे क़ैदी परिन्दों की तरह

सोचा न था कि एक उदास रात
अपनी खाट की पटिया ऐसे पकड़ कर रोऊँगा
जैसे पिंजड़े की तीली को पकड़े हुए
मृत हो जाते हैं पक्षी

सोचा न था कि प्रतीक्षा में खा जाऊँगा सारे नाख़ून
सुखा लूँगा अपना सारा उबलता ख़ून
लेकिन अगर सोचता तो क्या कर पाता ऐसे प्यार
जैसे कि किया !

सोचा तो ये भी न था
कि प्यार में ही होगा ये सब भी
कि तुम्हें अपना बनाने की मर्दाना ज़िद्द में
कर दूँगा एक दिन तुम्हारी ही हत्या…।