भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्त्रियाँ और वृक्ष / सुशान्त सुप्रिय

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:48, 18 फ़रवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशान्त सुप्रिय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्श्श
कि स्त्रियाँ बाँध रही हैं धागे
इस वृक्ष के तने से
ये विश्वास के धागे हैं
जो जोड़ते हैं स्त्रियों को
ईश्वर से

केवल स्त्रियों में है वह ताक़त
जो वृक्ष को ईश्वर में बदल दे

श्श्श
कि गीत गा रही हैं स्त्रियाँ
पूजा करते हुए इस वृक्ष की
ये विश्वास के गीत हैं
जो जोड़ते हैं स्त्रियों को
ईश्वर से

केवल स्त्रियों में है वह भक्ति
जो गीत को प्रार्थना में बदल दे

आश्वस्त हैं स्त्रियाँ अपनी आस्था में
कि वृक्ष के तने से बँधे धागे
उनकी प्रार्थना को जोड़ रहे हैं
उनके आदिम ईश्वर से