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स्वच्छ दीवार / मलय रायचौधुरी / सुलोचना वर्मा

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वह दीवार कैसी दिखती है
उसे नहीं पता
दीवार जिसकी है वह भी कभी
नहीं जान पाई
वह केवल जानती है कि है
दीवार
बचा-बचा कर रखा है
उस युवक के लिए
जिसे वह तोड़ने देगी
युवा लोग फिर भी पसीने से तर हो जाते हैं
एक स्वच्छ पतली
दीवार तोड़ते हुए
हज़ारों-हज़ार सालों से
तोड़ी जा रही है दीवार
रक्त के साथ रस से निर्मित
वह दीवार
जिसकी टूटती है उसे गर्व नहीं होता
जो तोड़ता है उसका भी
अहंभाव नाचता है पसीने में
रस का नागर होने का ख़िताब मिला है
प्रेमी को
प्रेमिका दिखाएगी चादर में रक्त लगाकर
अध्यवसाय में समय के साथ लड़कर
दीवार टूटने का वह आनन्द
दोनों जन का
जिसने तोड़ा और जिसका टूटा
सेलोफ़ेन-सा महीन
दीवार न तोड़कर मनुष्य
जन्म नहीं लेगा
इसलिए
सभी दीवारों को
स्वच्छ माँस से निर्मित
सेलोफ़ेन-सा हो या
लोहे की ईंट की अदृश्य
सीमारेखा की
प्रेम के पसीने में भिगोकर
तोड़ देना है ज़रूरी

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
               স্বচ্ছ দেওয়াল

সে দেওয়াল কেমন দেখতে
জানে না
দেওয়ালটা যার সেও কখনও
জানেনি
সে কেবল জানে রয়েছে
দেওয়ালখানা
বাঁচিয়ে বাঁচিয়ে রাখছে
সেই যুবকের জন্য
যাকে সে ভাঙতে দেবে
যুবকেরা তবু গলদঘর্ম হয়
স্বচ্ছ একটা পাতলা
দেওয়াল ভাঙতে
হাজার হাজার বছর যাবত
চলছে দেওয়াল ভাঙা
রক্তের সাথে রসের তৈরি
সেই দেওয়াল
যার ভাঙে তার গর্ব ধরে না
যে ভাঙছে তারও
অহমিকা নাচে ঘামে
রসের নাগর খেতাব মিলেছে
প্রেমিকের
প্রেমিকা দেখাবে চাদরে রক্ত লেগে
অধ্যবসায়ে সময়ের সাথে লড়ে
দেওয়াল ভাঙার সে কি আনন্দ
দুজনেরই
যে ভাঙল আর যার ভাঙা হল
সেলোফেন ফিনফিনে
দেওয়াল না ভেঙে মানুষ
জন্মাবে না
তাই
সব দেওয়ালই
স্বচ্ছ মাংসে গড়া
সেলোফেনে হোক কিংবা
লোহার ইঁটের অদৃশ্য
সীমারেখার
প্রেমের ঘামেতে ভিজিয়ে
ভেঙে ফেলা দরকার