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स्वागत में / भवानीप्रसाद मिश्र

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मन में

जगह है जितनी


उस सब में मैंने

फूल की

पंखुरियां

बिछा दी हैं यों


कि जो कुछ

मन में आए


मन उसे

फूल की पंखुरियों पर

सुलाए !