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स्वालम्बन के संत / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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पराधीन भारत मेॅ बापू दिव्य एक संदेश महान,
जन-जन केॅ जोड़ै के खातिर, दै देलकै प्राणोॅ के दान ।

अंग्रेजोॅ के राजोॅ मेॅ हौ भारत कत्तेॅ बेवश दीन,
शिक्षा दीक्षाओं सेॅ ही नै, निर्धनतौ सेॅ बड़ा मलीन ।

ई निर्धनता केॅ तोड़ै लेॅ बापू के हौ अद्भुत खोज,
जे गौरव सेॅ भरलोॅ छेलै, देशप्रेम सेॅ लब लब ओज ।

हर घर में खादी के चर्चा, हर घर में चरखा के राज,
निर्धन के माथा पर जेना सोना-मोती केरोॅ ताज ।

अपनोॅ रोजी, अपनोॅ रोटी, हर हाथोॅ केॅ जी भर काम,
खादी होतै सबके देह पर, सुन्दर कपड़ा सस्ता दाम ।

बड़ोॅ मील केॅ रोकै लेली, एक यही तेॅ बचै उपाय,
बड़ोॅ मील जे लघु धन्धा पर बनते रहलै क्रूर कसाय ।

भारी कल पुर्जा तेॅ दुश्मन लघु धन्धा के होतै छै,
हेनोॅ जहाँ व्यवस्था होतै, लघु जन वैठां रोतै छै ।

जांे चरखा ठो घर-घर होतै, जांे खादी के चलतै काम,
तेॅ समझोॅ निर्धन के घर में एक साथ छै चारो धाम ।

तबेॅ कथी लेॅ सरकारोॅ पर निर्भर रहतै निर्धन लोग,
ई स्वराज के ऐला सेॅ तेॅ मिटनै छै सब घर के सोग ।

स्वाभिमान के भाव उपजतै स्वअवलम्बन केरोॅ भाव,
स्वदेशी भावोॅ सेॅ जुड़तै जन के जन सेॅ नया जुड़ाव ।

बापू तोरोॅ सोच दिव्य हौ नया रोशनी सेॅ भरपूर,
खादी चरखा के गति देखी नीति विदेशी चकनाचूर ।

दान दहेजोॅ तक में चरखा उत्सव पर खादी के मान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ मेॅ हौ स्वदेशी के सुरुलय, तान ।

एक अकेले खादी-चरखा अंग्रेजोॅ ले काल समान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ मेॅ हौ, स्वदेशी के सुर लय, तान ।

सबके मन में भाव देश के, जागै छेलै एक समान,
गाँधी तोरोॅ राजोॅ में हौ स्वदेशी के सुरु लय, तान ।