भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारा रहनुमा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:34, 21 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब वह झूठ बोलता है,
लोग उसे सच मानते हैं
जब वह सच बोलता है,
तब भी लोग सच मानते हैं
और वह परेशान हो सोचता है :
वह सच बोल रहा है या झूठ ?

लोग जब उससे ख़ुश होते हैं,
उसकी जय-जयकार करते हैं
लोग जब परेशान रहते हैं,
उसकी जय-जयकार करते हैं
और वह मायूस हो सोचता है :
लोग परेशान हैं या ख़ुश ?

जब वह झूठ बोलता है,
उसे सच बनाना चाहता है
जब उसे सच बोलना होता है,
वह ख़ामोश रह जाता है
वह हमेशा डरता रहता है,
उसका सच कहीं झूठ ना हो जाय

वह सबकुछ कर सकता है,
सिर्फ़ सच नहीं बोल सकता