भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरि-सिर बाँकी बिराजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 11 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> हरि-सिर बाँकी बिराजै। …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरि-सिर बाँकी बिराजै।
बाँको लाल जमुन तट ठाढ़ो बाँकी मुरली बाजै।
बाँकी चपला चमकि रही नभ बाँको बादल गाजै।
’हरीचंद’ राधा जू की छबि लखि रति मति गति भाजै॥