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हा वह शून्य / अज्ञेय

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हा वह शून्य! हाय वह चुम्बन!
किस से किस का था वह प्रणय-मिलन-
किया था किस का मैं ने चुम्बन!
तेरा या तेरे कपोल का या उस पर आँसू अमोल का
या जो उस आँसू के पीछे छिपी हुई थी विरह-जलन?
किया था किस का मैं ने चुम्बन?
या कि- आज सच ही सच कह दूँ, अपना संशय सम्मुख रख दूँ!-
तेरे मृदु कपोल पर ढलके विरह-जलन के आँसू छलके-
तेरी विरह-जलन के पीछे सोयी थी जो मेरी छाया,
आड़ उसी को ले कर मैं ने अपना आप भुलाया?
अपने से अपना था प्रणय-मिलन-
किया था किस का मैं ने चुम्बन?
हा वह शून्य! हाय वह चुम्बन!

मुलतान जेल, 30 नवम्बर, 1933