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हाल पूछा है तभी / संतोष श्रीवास्तव

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मै मोहब्बत के सफे पर
इक तारीख-सी सजी हूँ और तू मेरे दिल के गोशे में हिना बन के रचा है
जब भी ये दिल किसी का होता है दर्द कम नहीं बेहिसाब होता है इक समँदर-सा
नज़दीक ही उमडता है
हर लहर का हिसाब रखता है
मौजें दिल के करीब आती हैं लफ्ज़ कश्ती से थरथराते हैं नुकई पाज़ेब की तरन्नुम बन
चलती पतवार छनछनाती
सुन के वह टूटता, दरकता है मैं घटा बन के बरस जाती हूँ मैं अँधेरों की रोशनी उसकी
वो चाँद बन के दरीचों में जगमगाता है
वह इधर से ज़रा-सा क्या गुज़रा मैकदा पास लगा,
मैकशी का आलम भी
बहके बहके से लगे
सारे नज़ारे तौबा जब लगा यूँ कि बहक जाउँगी मर जाउँगी
इश्क हीरा है, चाट जाउँगी
हाल पूछा है तभी मेरे गमगुसारों ने