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हुआ है थक के बेदम जिस्म फिर भी साँस जारी है / अनुज ‘अब्र’
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हुआ है थक के बेदम जिस्म फिर भी साँस जारी है ।
न जाने और कितनी ज़ीस्त पर मेरी उधारी है ।।
सुकूं के वास्ते यारो जमाने भर में भटका हूँ ।
किसी सूरत नही जाती ये कैसी बेकरारी है ।।
कभी आकर मेरे घर की दरो-दीवार से पूछो ।
तुम्हारे बाद मैंने जिंदगी कैसे गुजारी है ।।
नमक ज़ख्मों पे मलने का हुनर सीखे कोई उनसे ।
ग़ज़ब ग़म ख़्वार है मेरे ग़ज़ब की ग़म गुसारी है ।।
परों को नोंच कर मेरे क़फस में डाल दो फिर तो ।
मुझे बरबाद करने की अगर नीयत तुम्हारी है ।।
यूँ मेरी शख्सियत पर आप क्यों उंगली उठाते हो ।
सभी से बा -अदब मिलना तो मेरी इन्किसारी है ।।
करे वो बेवफाई और अपनी जान तुम दे दो ।
अनुज तुम ही बताओ ये कहाँ की होशियारी है ।।