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अंकुर / प्राणेश कुमार
Kavita Kosh से
गरम हवाओं के मौसम में
लगी है आग जंगलों में
धधकता है जंगल
वनरक्षियों ने ही लगाई है आग
लपटों से घिर गया है जंगल
जलस्रोत सूख गए हैं
पहाड़ों का बदन तप रहा है
पक्षियों के घोंसलों तक
पहुँच गयी है तपिश
जानवर भागते हैं सुरक्षित आश्रय की तलाश में।
अग्नि सब कुछ जला डालेगी
आषाढ़ के प्रथम मेघों का रहेगा
इंतजार जंगल को
जब अमृत - जल बन
बरसेगा मेघ
और
जंगल में जीवन का अंकुर फूटेगा।