भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंखमुंदा भागत हें / बुधराम यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहे भुलाइन कनिहा कोहनी
घुठुवा मुरूवा माड़ी!
पिसनही जतवा ढेंकी अऊ
मूसर धूसर कॉंड़ी!
पर्रा बिजना टुकना टुकनी
पैली काठा खाँड़ी!
सेर पसेरी नादी ठेकवा
दीया चुकलिया चाँड़ी!
लीटर मीटर किलो म अब
जिनिस ह जमो नपावत हे!
बटलोही बटुवा थरकुलिया
कोपरा कोपरी हंडा!
किरगी-किरगा पाला पौली
अउ दरबा सत खडा!
बटकी मलिया गहिरही ओ
हाथी पाँव कटोरा!
फूल कांस थारी म परसय
जेवन बहू अंजोरा!
अब फकत फाइबर चीनी के
घर घर सेट सजावत हें!

नींद भर रतिहा ले जागंय
अउ का म बुता ओसरावंय!
चटनी बासी टठिया भर
बेरा ऊवत पोगरावंय!
हंसिया कुदरी धरे हाथ
मुंड़ म डेकची भर पानी!
पाछू पाछू चलय मंडलिन
आगू चलय जहानी!
अब तो आठ बजे जागंय अउ
चाह म चोला जुड़ावत हे!

राखड़ यूरिया अउ पोटास
संग कइ किसम के खातू!
कीरा मारे बर बिरवा के
कइ ठन छींचय बरातू!
साग पान के सर सुवाद ह
बिलकुल जनव परागे!
रसायन खातू के मारे
भुइंया जनव खरागे!
अब तइहा कस बासमती न
महाभोग महावत हें!

बावा भलुवा चितवा तेंदुवा
सांभर अउ बन भैंसा!
रातदिना बिचरंय जंगल म
बिन डरभय दू पैसा!
नसलवादी अब इंकर बीच
डारत हावंय डेरा!
गरीब दुबर के घर उजार के

अपने करंय बसेरा!
तीर चलइया ल गोली बारूद
भाखा ओरखावत हें!

जबरन मारंय पीटंय लूटंय
जोरे जमो खजाना!
बेटा बेटी अगवा करके
सौंपंय फौजी बाना!
हमर घर भीतर घुसरके
हमरे मुड़ ल फाँकंय!
जेकर हाथ लगाम परोसी
कस दूरिहा ले झाकंय!
कांकेर बस्तर जगदलपुर का
सरगुजा दहलावत हें!

देश धरम बर जीवइया ल
खाँटी दुसमन जानय!
कानून कायदा राज काज
हरके -बरजे नइ मानय!
बिना दोष के मारंय पीटंय
लूटंय सकल उजारंय!
संग देवइया मन के जानव
कारज जमो सुधारंय!
बिरथा मोह के मारे मुरूख
बस दुरमत बगरावत हें!

कतको चतुरा मनुख हवंय
चाहे कतको धनवंता!
कतको धरमी-करमी चाहे
अउ कतको गुनवंता!
कतको रचना रचिन भले
अउ धरिन बड़े कइ बाना
इहें हवय निसतार जमो के
का कर सरग ठिकाना!
अखमुंदा भागत हें मनो
पन-पंछी अकुलावत हें!

गाँव रहे ले दुनिया रइही
पाँव रहे ले पनही
आँखी समुहें सबो सिराये
ले पाछू का बनही!
दया मया के ठाँव उजरही
घमहा मन के छइहाँ
निराधार के ढेखरा कोलवा
लुलूवा मन के बइंहाँ!
नवा जमाना लगो लउहा
जरई अपन जमावत हें।