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अंतराल / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
बूंद बूंद से गागर
भरती होगी
लोगों की
अपनी तो सदा
खाली ही नज़र आती है...
दरअसल
इतना लम्बा है यहाँ
बूंदों का अंतराल
कि जब तक
दूसरी आये
पहली दम तोड़ देती है...!