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अंधेरी / स्नेहमयी चौधरी
Kavita Kosh से
मैं ही जलती हूँ
मैं ही बुझती हूँ
कभी अगरबत्ती की सुगंध बन जाती हूँ
कभी धुँआ उगलती चिमनी
अंधेरे में हो या उजाले में
मैं ही तो हूँ
और कोई नहीं
कोई नहीं...