भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंबर का छाया मेघालय / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंबर का छाया मेघालय
तड़-तड़-तड़-तड़
तड़का टूटा,
रोर-रोर ही
फूटा, फैला
चपला चौंकी-
फिर-फिर चौंकी,
बाहर आकर
चम-चम चमकी,
गदगद-गदगद
गिरा दौंगरा,
पानी-पानी हुआ धरातल,
कल-कल
छल-छल
लहरा आँचल।

रचनाकाल: १९-०९-१९९१