अइलोॅ छाैं तोरोॅ पाती / मृदुला शुक्ला
पीरोॅ-पीरोॅ सूरजमुखी के फूलोॅ में,
हम्में तोरोॅ, पीरोॅ चेहरा देखी रहलोॅ छी।
अन्नोॅ के खाली कनस्तर में; आभावोॅ के चूड़ी सें
हम्में तोरोॅ गीत सुनी रहलोॅ छी।
रोहित के जिनगी आरु शैव्या के फटलोॅ अँचरा,
तोरोॅ पाती सें इतिहास गुनी रहलोॅ छी।
फूल के ऊ कटोरा
जेकरा मंे खैनंे छेल्हौ खीर
तोरोॅ अंचरा के फूलोॅ नें पहिली बेर,
ओकरा छोड़ाबेॅ नै पारलेॅ छौ,
यहेॅ सनेश लेनें अइलोॅ छौं तोरोॅ पाती।
माय के खाँसी जारी, आरु दवा बन्द छै।
तुलसी आरु काढ़ा पर रात कटै छै।
मैना के कपड़ा आवेॅ छोटोॅ पडे़ॅ लागलै।
ओकरोॅ देहोॅ के बाढ़ सें तोरोॅ नींद खुलै छै
बेचैनी के अँचरा सॅभारतें अइलोॅ छौं तोरोॅ पाती।
लखना के घोॅर छोड़ी, दोसरा के दरवाजा पर बैठवोॅ
बाबुजी के बूढोॅ हड्डी सें दू बीघा जमीनोॅ में जुतवोॅ
दखिनवारी घरोॅ के पिछलका भीत के गिरवोॅ
ई सब कैफियत देनें अइलोॅ छौं तोरोॅ पाती
लिखलेॅ छौ हमरा, अपना देह पर धियान देना छै
सरदी संे बचैलेॅ स्वेटर एक गरम लेना छै
घी अगर ओराय गेलोॅ रहै तेॅ खबर भेजवाना छै।
हमरोॅ चिता में आँखी के लोर पोछतेॅ अइलोॅ छौं तोरोॅ पाती
सब लीखी देनें छौ तोहें, नै लिखलोॅ छौ
जे हम्में पढ़ी रहलोॅ छी।
कि तोरोॅ तार-तार होय गेलोॅ छौं।
कि सावनोॅ के हरा चूड़ी नें तोरा ललचैलेॅ छौं।
कि तोरोॅ आँखी के नीचेॅ करिया घेरा बढ़ी गेलोॅ छौं।
कि माथा दरद नें तोरा उठतेॅ-उठतेॅ बैठाय देलेॅ छौं।
मजकि जटियेलोॅ केस आरू सूखलोॅ देहवाली
तोहीं हमरा लेली सावनोॅ के भरली नदी छेकी
हमरोॅ मन के ऐना में बसली प्रेयसी,
तोहीं हमरोॅ गीतोॅ के उर्वशी छेकी।
यै लेली हम्में तोरोॅ चेहरा में, पीरोॅ सूरजमुखी देखी लै छिहौं
आरु महानगर के इ जंगलोॅ में, यादोॅ के साथें जीवी लै छिहौं
तपलोॅ धुरयैलोॅ जेठ के महीना में
वसंत के झोंका बनी अइलोॅ छौं तोरोॅ पाती।