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अइसे फूल बनो तुम / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
महर-महर फूल करथे, जइसे फुलवारी म रे।
रिग-बिग दिया बरथे, जइसे देवारी म रे॥
अइसे फूल बनो तुम, तइसे दिया बनो तुम...।
भाग भरोसा कुछु नई मिले
करम करे म मिलथे बिरो।
गिर के उठव उठ के चलव
चाहे रद्दा में कतको गिरो॥
जंगल-परबत दऊड़त हे, जइसे नंदी धारी ह रे,
तइसे धार बनो तुम, संगी हुसियार बनो तुम।
रूप-रंग के पूजा नई होय
पूजे जाथे मनखे के गुन ह।
दया-मया संग पर के सेवा।
जिनगी में फलित होथे पुन ह॥
जग-जिनगी ल साँस मिले, जइसे पुरवाही म रे
तइसे हवा बनो तुम, तइसे दवा बनो तुम।
मरना सब ल खचित एक दिन,
फेर मरना अइसे मरो तुम।
अपन जननी-जनम भूमि बर
परान निछावर करो तुम॥
चंदा ले निरमल हो जथे, जइसे रात कारी ह रे,
तइसे चंदा बनो तुम, सुरुज बनो तुम।