भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अकथ कथा / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
जठै उगणौ हो
रूंख
वठै नीं ही जमीन !
अर जठै ही जमीन
वठै तांई नीं पूग्यौ बीज !
बस्स !
अठै ही खतम हुवै आ अणकथ कथा
ऐक पेड़ रै उगण री।