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अक़्स कविताएँ / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
पानी में
एक मोरपंख गिरता है
चाँद के अक़्स पर
ठीक है
अक़्स ही सही
पानी में तुम जितने हो
उतना तो काँप ही सकती हूँ
मैंने अक़्स को छुआ
पृथ्वी सरक गई
ईश्वर की त्वचा से छाया हटाती हुई