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अक्षय-वट टूट गया ! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
वनपाखी शोक न कर
अक्षयवट टूट गया!
छतनारी पलकें वे
देतीं जो छायाएं
छोड़ गईं देकर कुछ
दुखदायी गाथाएं
अपशकुनी गाज गिरी
मंगल-घट फट गया!
लोक-गीत गाते पल
आंधी ने छितराये
छंदव्रती रागों के
खंडित स्वर अकुलाये
वंशी की तानों से
यमुना-तट रूठ गया!
अमराई में थककर
उन्मन संकेत हुए
तालों वाले प्रसंग
मरुथल का रेत हुए
पत्थर से पंख बंधे
भावुक क्षण छूट गया!