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अगर नहीं आज... / जय गोस्वामी
Kavita Kosh से
दर्शक,
देखो उस माँ को, जो
सीने से बच्चे को चिपकाए
अपना बलात्कार रोकने का प्रयास
कर रही है...
देखो, उनलोगों ने छीन लिया उसके बच्चे को,
उसके सर को मुठ्ठी में पकड़
घुमाया दो-ढाई बार,
टूट गई उसकी गरदन
फिर उस तिलमिलाते पुतले को
फेंक दिया नदी में
खड़े-खड़े यह दृश्य तुमने देखा
मैंने भी
इसके बाद किसी के पदत्याग की मांग करने से
मिलना क्या है?
अगर आज नहीं वापस ला सके
उन तमाम गाँवों को
जो श्मशान में तबदील हो गए,
अगर आज नहीं इकट्ठा कर सके
उन तमाम रुलाइयों को
जो सूख गईं,
अगर नहीं आज उनका एक स्तूप बन सके
अगर नहीं आज सारे शोक, जो सहम गए
एक चिनगारी बन
विस्फोट कर सकें?
बांग्ला से अनुवाद : विश्वजीत सेन