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अगली बार / प्रतिभा सक्सेना
Kavita Kosh से
पार करते हुए जब जन्मान्तरों को
पहुँच जाऊँ यहीं अगली बार!
और सुन्दर यह धरा उस बार होगी,
आज की यह कल्पना साकार होगी,
यही प्यारे दृष्य, यह कलरव खगों का
सुखद होगा रास्ता मेरे पगों का,
राग भर मन सुरभि-चंदन -
भावना अंकित यहाँ हर बार
उगे होंगे नये अंकुर नए पत्ते
स्वर अधिक कुछ पगे होंगे नेह रस से!
जान लेगा बात मन की दूसरा मन,
सँजोए नवरस महकते पुष्प के तन
चित्र-वीथी सी दिशाओं के पटों पर
जहाँ आऊँ पुनः अगली बार!