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अगवानी / जगदीश चतुर्वेदी
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आज तुमने बहाई होंगी डोंगियाँ
अक्षत, चावल, दीप रखकर
बाले होंगे आकाश-दीप
मेरी अगवानी के लिए, वर्षों बाद !
तुमने आज फिर पहनी होगी
वही सन्दली साड़ी,
अधखुले केशों में गुँथे होंगे
सुवासित मोतिया के गजरे ;
आज तुमने हर आवाज़ को
चौंककर देखा होगा
आज तुमने अपनी माँ के उलाहनों पर
मुस्करा दिया होगा ।
आज तुमने गुनगुनाई होगी
मनचाहे गीत की कड़ी
आज तुमने फिर से एक बार
बचपन को जिया होगा ।
आज तुमने खोल दी होंगी
बन्द कमरे की खिड़कियाँ
आज तुमको अच्छी लग रही होंगी
सावन की घटाएँ ;
आज तुमने पा लिया होगा
पूरा जीवन फिर से एक बार
आज तो तुम फिर से जवान हो गई होगी
-- ताज़े फूल-सी जवान ।