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अग्नि का सौन्दर्य / विमल राजस्थानी
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और सब सौन्दर्य नश्वर हैं धरा के
अग्नि का सौन्दर्य मुझको खींचता है
लाल लपटों के निमन्त्रण में लिखा है
-‘‘उध्र्वगामी एक बस, मेरी शिखा है
जन्म मेरी ओर ही प्रतिक्षण बढ़ा है
ज्ञानियों ने बन्द आँखों से पढ़ा है
मृत्यु का पीयूषवर्षी घन, पिपासित-
युग-युगों से मरू-हृदय को सींचता है’’
अग्नि का सौन्दर्य मुझको खींचता है।
एक दीपक-लौ तिमिर को तोड़ती है
सूर्य से नाता धरा का जोड़ती है
जिंदगी को ज्योति-पथ पर मोड़ती है
नींद के कंध पकड़ झिंझोड़ती है
यह चिता का दाह जागृति का सखा है
चेतना को बाहु में भर भींचता है
अग्नि का सौन्दर्य मुझको खींचता है