भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अच्छा लगता है / अशोक तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छा लगता है
...........................
अच्छा लगता है उन हाथों का स्पर्श
महसूस करना उनकी गर्मी
जुड़े रहे जो मेहनत के लिए हमेशा
बग़ैर किसी ऊँच-नीच के
अच्छा लगता है उन पैरों को छूना
जो सामंती मूल्यों के विरोध में खड़े होकर
बढ़ते ही रहे प्रगति पथ पर
खुरदरे रास्तों पर
लेकर सबको साथ
 
जिन आँखों की चंचल थिरकन
में बसता हो एक ख़ूबसूरत संसार
जहां के रिश्ते
किसी बनावटी या थोथे मूल्यों में न ठहरे हों
झांकती हों जो
दूसरों के अंदर
ख़ुलूस और अपनत्व की भाषा में
किसी तिलिस्म से इतर
जिसकी नज़र में मेहनत एक
ईमानदार भाषा हो...
सबकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी तलाशने वाले
चेहरे की रंगत पर बलिहारी हो जाने को जी चाहता है

एक बदन जो बिना रुके
बिना थके
काम करने के लिए हो तैयार
क्यों न झुक जाए उसके लिए
कोई भी सरे बाज़ार
जिसके लिए हो इंसानियत
पहला और आख़िरी रिश्ता
बताओ क्यों न हो
उस इंसान से हमारा
ज़िंदगीभर का गाढ़ा वास्ता
ईमानदारी नज़र आती हो जिसके
नाखूनों के पोरों तक में
अच्छा लगता है उड़ना उसके साथ
आगे ही आगे फलक में।
 
मन के धरातल पर
ढाड़ें मारता हो जिसके अंदर
समंदर
जिसके अंदर उठती हैं वेगवती लहरें
छूती हैं जो चुपचाप शांत किनारे को
जिसके अंदर का आवेग
रहता हो हमेशा
शांत, धीर और गंभीरता के साथ
अंदर ही अंदर
 
वही हाथ जो उठते हैं पीने के लिए
ज़मानेभर का गरल...
अच्छा लगता है
उन हाथों का स्पर्श!
 ……………..

(मेहनतकश दोस्त के लिए)