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अच्छा लागै छै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
रिमझिम-रिमझिम मेघ बरसबोॅ
अच्छा लागै छै।
झूमी-झूमी अपना में गाछोॅ के मिलबोॅ
अच्छा लागै छै।
कुंतल साजी छै मेघ गगन में,
जलतै नै कोय आय अगन में,
नाची रहलोॅ छै कृशक किशोरी
हर कोय छै आय मगन में।
कंुतल किसलय नांकी मेघोॅ के नाचवोॅ
अच्छा लागै छै।
दमक दामिनी के दमकवोॅ,
आपस में ओकरोॅ दाँत बजैवोॅ,
घन बीच धहरबोॅ आरू गरजबोॅ,
हरिहर धरती केॅ रौशन करी केॅ
मुसलधार शतधार बरसवोॅ
अच्छा लागै छै।
कखनूं लरजी केॅ, कखनूं थमकी केॅ
कखनूं झमकी केॅ, कखनू छहरी केॅ
लागै बरसा बरसी रहलोॅ छै,
ठुमकी-ठुमकी केॅ, छहरी-छहरी केॅ।
एैन्हां में पिय साथ रातभर जागी केॅ रहबोॅ
अच्छा लागै छै।