अजन्मा शैशव / शशि पाधा
विदा की अंतिम वेला में माँ
पूछूँ तुमसे एक सवाल
अजन्मी तेरी बिटिया नन्हीं
क्यों छीने तुमसे महाकाल|
अभी न खेले खेल खिलौने
न कोई तीज त्यौहार,
अभी न देखी सूरत तेरी
अभी न पाया प्यार|
अभी न देखे चन्दा सूरज
ना तारों की छाँव
अभी न देखे ऋतुओं के रंग
ना गलियाँ ना गाँव |
नन्हें नन्हें अंग हैं मेरे
गिनें चुनें हैं श्वास
जाने क्यों कर टूट रहा
अब जीवन से विश्वास|
मुझे बनाया कन्या तो माँ
मेरा क्या है दोष
अजन्मे ही मेरे होने पर
क्यों कर सब को रोष ?
विधि ने जो स्वरूप दिया
क्यों सब को न स्वीकार
जग में मेरे होने से क्यों
सब करते इनकार |
मुझे मिटाने की चर्चा जब
माँ तेरे घर में होती
सत्य बताना माँ तू तब
क्या तेरी ममता रोती?
गर मैं होती बालक तो क्या
तू भी हामी भरती?
नन्हीं सी यह जान बचाने
नाना यत्न न करती ?
किसने किया विवश तुझे मां
किसने किया प्रहार
जिन हाथों का काम सृजन
वे क्यों करते संहार?
मैं तो थी इक प्रेम का अंकुर
क्यों सब बनते अनजान
अजन्मे शैशव की पीड़ा, क्या
कोई न पाया जान?
जीवन का वरदान जो पाती
सब को खुशियाँ देती
कोख तेरी में पलकर माँ
मैं तेरे जैसी होती।
माँ, ममता की छाया है क्या
मैं तो जान न पाई
भाई बांधव रिश्ते नाते
कोई न दे दुहाई
जहाँ से आई, वहाँ चली
ले मन में इक वीरानी
कभी -कभी माँ याद करोगी
मेरी लघु कहानी?
कभी कभी क्या याद करोगी
मेरी लघु कहानी?