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अजल का पयाम / नज़ीर अकबराबादी

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दुनियां के बीच में जो कोई ख़ासो आम है।
क्या शाह क्या वज़ीर मियां क्या गुलाम है॥
गर्दन के बीच मौत का अब सबके दाम है।
हम दम का आना जाना जो अब सुबहो शाम है॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥1॥

जिस रोज़ उसकी ज़ात पे हस्ती का आया नाम।
उस दिन से नेस्ती तो उसे कर चुकी सलाम॥
हर वक़्त उसको मौत का जाने लगा सलाम।
यह जो निकल बक़ा ने फ़ना में किया मुक़ाम॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥2॥

हस्ती के जब से नाम पे उसकी क़लम चली।
हस्ती के है ज़मी से लगी साथ नेस्ती॥
कुछ बात हस्तो नेस्त की जाती नहीं कही।
ग़फ़लत से अपनी यह यों ही जाती है ज़िन्दगी॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥3॥

रोटी से खून, खून से नुत्फ़े जहां बना।
हालात भी जब ही से लगी होने फिर फ़ना॥
जबीं हो गई ग़रवाल में छिना।
आखिर जब उसकी मां ने ज़मीं के उपर जना॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥4॥

पैदा हुआ तो करने लगा रोके ‘हाव’ ‘हाव’।
जो बेस्ती थी सो वह हुई हस्ती उसके भाव॥
फिर घुटनों से चलने लगा फिरने पांव पांव।
माँ ने पिलाया दूध तो बावा ने रखा नांव॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥5॥

तन में जब उसके आ के दाखिल हुआ बढ़ाव।
जाना बढ़ाव उसने व लेकिन था वह घटाव॥
सो सो तरह के दिल में लगे होने राव चाव।
जो ऐन था लगाव वह सूझा उसे बनाव॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥6॥

दस पन्द्रह वर्ष हो गए जब उम्र सेरवाँ।
फिर ऐशो इश्रतों की हविस आई दरमियां॥
फूला यह दिल में मां जी हुआ अब मैं जबां।
इसकी जवानी का मैं करूं ज़िक्र क्या क्या॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥7॥

जब आए उसके तन बदन जवानी के बबूले।
मां बाप निस्वत करके उसे ब्याहने चले॥
जब ब्याह लाये करके बहुत चाव चौचले।
यह खुश हुआ मैं लाया दुलहिन ब्याह कर चले॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥8॥

लज़्ज़त मिली जो फिर उसे ऐशो तमाअ की।
दिन रात उस मजे़ में न फिर कल उसे पड़ी॥
जब कसरत जमाअ से मनी घटी।
जो ऐश ज़िन्दगी थी वही सब निकल गई॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥9॥

शुहवत में उसका खूब सा जिसदम लहू चुआ।
इस खू़न का शिकम में बंधा आनकर थुआ॥
फिर बाद नो महीने के बेटा जहां हुआ।
बेटा वह क्या हुआ कि हुआ बाप अधमुआ॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥10॥

जब तक जवां रहें इश्रत की थी नमूद।
और जब ढली जवानी तो ग़म का हुआ वजूद॥
दाढ़ी के बाल थे निहायत स्याह कबूद।
जब उस स्याही में वह सफ़ेदी हुई नमूद॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥11॥

दो चार लड़के उसमें हुए जबकि उनके हां।
फिर उनके घर में पैदा हुए लड़के लड़कियां॥
या ‘बाबा’ ‘बाबा’ कहते थे सब उनको हर ज़मां।
या ‘नाना’ ‘दादा’ नाम हुआ उनका फिर वहां॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥12॥

जबसे सफेद हो गए जो बाल थे स्याह।
फिर वह तो खासे मौत के आकर हुए गवाह॥
उसमें घटी जो उनकी आंखों की फिर निगाह।
उन कम निगाहियों का बयां क्या करूं मैं आह॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥13॥

कानों पे उनके जिस घड़ी आ हादसा पड़ा।
गफलत कीनींद तो भी न उनकी गई ज़रा॥
हंस हंस के मुंह से दांत भी उसके हुए जुदा।
रोटी लगे निगलने, मसूड़ों से पुल पुला॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥14॥

जिस वक़्त उनके नूर हुआ कम निगाह का।
ऐनक को रख के नाक पै फिर देखने लगा॥
कानों के बीच उसमें कम आने लगी सदा।
खासे बहिश्ती बहरे हुए फिर तो वाह! वाह!॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥15॥

फिर नीदो भूक उनको में आकर हुई कमी।
गर्दन हिली कमर झुकी और दिल हुआ हजी॥
उनकी तो यहां से चलने की तैयारियां हुई।
क़द झुक गया फिर उनको खबर तो भी कुछ नहीं॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥16॥

जैसे कि हंसते फिरते थे यारों के साथ में।
वैसे ही बूढ़े होके पड़े मुश्किलात में॥
ताकत क़मर की कम हुई, असा आया हाथ में।
रोना फिर उनको आने लगा बात बात में॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥17॥

था गोश्त उनके जिस्म का वह किस कदर कड़ा।
वैसा ही आखि़रश को हुआ नरम पुल पुला॥
दाना के सामने तो न परवा कोई रहा।
उसमें मरीज़ होके जो खाने लगे दवा॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥18॥

जाती रही जवानी वह होशो हवास आह।
और तन भी उसका सूत हुआ मिस्ल घास आह॥
जो भी दवा दी उसको वह आई न रास आह।
मुर्दे की तन से आने लगी उसके बास आह॥
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥19॥

आए फिर उसको वजअ में हसरत के बलबले।
दो हिचकियां लीं और यह दुनिया से चल लिये॥
नाहक़ अदम से आके हम इस जाल में फंसे।
समझे कोई तो यह भी अजल का पयाम है॥20॥

शब्दार्थ
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