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अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की / बशीर बद्र

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अज्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
हैसियत क्या मिरी इकाई की

मेरे होंठों के फूल सूख गए
तुमने क्या मुझसे बेवफाई की

सब मिरे हाथ पाँव लफ्ज़ों के
और आँखें भी रोशनाई की

मैं ही मुल्ज़िम हूँ मैं ही मुंसिफ़ हूँ
कोई सूरत नहीं रिहाई की

इक बरस ज़िंदगी का बीत गया
तह ज़मीं एक और काई की

अब तरसते रहो ग़ज़ल के लिए
तुमने लफ्ज़ों से बेवफाई की