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अजुकी दाइ / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
अजुकी हम दाइ छी,
अधिक अगुताइ छी,
अहाँ बाट ताकू हमहीं विदेश जाइ छी
राखि लिअ अपन चूल्हि खापड़ि ई घऽर द्वारि ,
साँॅझ दियऽ अपने सँ आंगन मे दीप बारि ,
अहँक चार खरड़ल हम लहरल सलाइ छी
व्यर्थ भेल सिनुरदान कोबर घर सूनसान,
टूटि गेल पिंजर पट्ट पंछी भड़लक उड़ान
अपना पाँखिक कमाइ गाछ चढ़लि खाई छी
प्रिय वा प्रियतर कहाऊ, प्रियतम तऽ पाइ भेल
सर्वोपरि टका तकर, दिव्यज्ञान आइ भेल
तेॅ ने हम एक सिरये , अपने अघाइ छी
बेबी भऽ हेतै तऽ अपने केॅ लऽ आनव
ताहि कालक हेल्पिंग केॅ बड़का टा गुण मानव
पातिव्रत्य रहल कऽ खा कऽ नहाइ छी