भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अटल / माखनलाल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हटा न सकता हृदय-देश से तुझे मूर्खतापूर्ण प्रबोध,
हटा न सकता पगडंडी से उन हिंसक पशुओं का क्रोध,
होगा कठिन विरोध करूँगा मैं निश्वय-निष्क्रिय-प्रतिरोध
तोड़ पहाड़ों को लाऊँगा उस टूटी कुटिया का बोध।
चूकेंगें आगे आने पर सारे दाँव विधाता के,
धोऊँगा पद-कंज आँसुओं से मैं जीवन-दाता के।

रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुर-१९१९