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अड़गड़ा / नवीन ठाकुर 'संधि'
Kavita Kosh से
जानकी माय हे, जानकी माय,
तोंहें कत्तेॅ करै छोॅ अनियाय।
जान-माल जोरलोॅ करोॅ,
दिन-रात अगोरलोॅ करोॅ।
तोरोॅ मालें नै जानैं छों तीतोॅ-मीट्ठोॅ,
चास चराय केॅ कर लहे हमरा भीट्ठोॅ।
तोरा दै छियौं आय समझाय,
जानकी माय हे, जानकी माय।
हद छोॅ तांेहें पतितोॅ जे करै छोॅ अनसुनी,
कत्तेॅ एैवोॅ तोरोॅ घोॅर घुमी-घुमी।
कहबौं उल्टा-सीधा तेॅ कहवोॅ कहै छोॅ,
बोलतें-बोलतें मुँह दुखाय गेलोॅ तयोॅ नै सुनै छोॅ।
बच्चा-बुतरू थकी जाय छै कमाय-कमाय,
जानकी माय हे, जानकी माय।
गंेठा-डोरोॅ की जरी गेल्हों।
देखलोॅ करोॅ जालमाल कि धोरैय मरी गेल्हों,
मटरा बापें जानतोॅ तेॅ अड़गड़ा दै आयतों,
पैसा भरवेॅ तबेॅ तोरा बूझैतौं।
कहै छै ‘‘संधि’’ अड़गड़ा छै सोझोॅ उपाय,
जानकी माय ह,े जानकी माय।