भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अड़ताळीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
लुगायां जागै स्हैर मांय
अर करै ब्रस उंतावळी-उंतावळी
जावणो है पार्क बांनै
लगावणा है चक्कर फूलां रा दो-चार
-जद जाÓर
बै तरोताजा हुवै
कविता भी इणी ढाळ दिनुगै आंख खोलै
जे सबद छाजा हुवै।