भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अड़वो ! / श्याम महर्षि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उजड़यै खेत दांई
हुंवतै मुलक मांय
चरता जाय रैया
लगोलग
हिड़ावड़ा डांगर
अर ओठारू,

डरपीज‘र
लुकता फिरै
उजडै़ खेत‘रा करसा
अठीनैं-वठीनैं
गुवाळिया
माडाणी भिलाय रैया खेत
अर चराय रैया
आपरा डांगर अर
ओठारूआं नैं

करसा डरपीज‘र
खेत रूखाळी रो कारज
सूंप दियौ अबै
रंग बिरंगै
काळै-कळूटै
धोळै-धप्प अड़वां नै,
इण सूं अबै नीं डरै
बेसरम अर ढ़ीट गुवाळियै रा
डांगर-ओठारू
अर रोही रा
दूजा जिनावर,
अड़वो अबै
गाळ नीं मानीजै
ईमानदार अर साचै मिनख नै ई
कैवण लागग्या लोग अड़वो।