भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अणबोला-अणबूझ / मोहम्मद सद्दीक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अणबोला अणबूझ
सूपतां नै म्हारा प्रणाम
अणदीठा अणजाण
शहीदां नै म्हारा प्रणाम।

कण-कण करजदार है म्हारो
रोम रोम है आज रिणी
बलिदानी पूतां रै कारण
धरती म्हारी बणी-ठणी।

मन रो मोर टहूका मारै
कोयल बैणी गावै लूर
सोनलियै सूरज री किरणां
देख अंधारौ भागै दूर।

सत राखणियां पूत
सपूतां नै म्हारा प्रणाम
आजादी रा दूत
शहीदां नै म्हारा प्रणाम।

आज गगन इतराय रयो है
आज धरा धण हरी भरी
आज पवन री चाल मस्त है
आज मनुज री बात खरी
कण-कण सींच रगत सत सांचो
हरख-हुळस मन नाच रयो
खरी आरसी मन मोती सा
आखर आखर बांच रयो

घणमोला गुणरूप
सपूतां नै म्हारा प्रणाम
लाखीणा जसरूप
सपूतां नै म्हारा प्रणाम।

पर धरती रा बीज पळै हा
इण धरती रै खेत में
रूड़ो-रूप अलूणो फिरतो
आखी उम्मर रेत में
दे बलिदान होम दी काया
मिनख पणै नै राख लियो
आजादी रै हासल खातर
खारो मीठो चाख लियो

मन मीठा मनरूप
सपूतां नै म्हारा प्रणाम
रसभीणा रसरूप
किसानां नै म्हारा प्रणाम।

तोड़ सांकळां ली आजादी
मिनख मिनख नै मान दियो
जलमभौम रै खातर लोगां
तन-मन-धन रो दान कियो

आजादी रा परवानां बण
अरपै जीवन जणो-जणो
जीवन-धन नै वारणियां पर
आज देस नै गरब घणो
जसजीणा जगरूप
जवानां नै म्हारा प्रणाम
सिंघारूप अनूप
शहीदा नै म्हारा प्रणाम।

इण धरती रो रूप अनूठो
अणहदनाद सुणीजै लो
गुण री खान दिनोदिन दूणी
काया सार गुणीजै लो
मन रो मोल करणिया माणी
धरती रा धन राख रूखाळ
पत राखण जीवण रै सारू
तप थोड़ो तप लोही बाळ
ममता रा गळहार
सपूतां नै म्हारा प्रणाम
धरती रा सिणगार
मजूरां नै म्हारा प्रणाम।